वस्तुत: कठिनाइयों एवं संकटों के माध्यम से ही ईश्वर हमें बढ़ने का अवसर प्रदान करता है। जब कोई व्यक्ति आत्मुग्ध होता है तो वह अपनी उपलब्धि के बारे में गलत अनुमान लगा लेता है। ज्यादातर लोग अच्छे उद्देश्य लेकर चलते हैं और उसके मुताबिक काम करते हैं तो उसका अच्छा ही परिणाम मिलता है। कोई भी व्यक्ति, जो निगशाजनक ढंग से अपने किए का मूल्यांकन करता है, तो उसके अच्छे उद्देश्यों में विरोधाभास पैदा हो जाते हैं।
कुछ लोग अपना काम उस ढंग से करते हैं जो उन्हें. सुविधाजनक लगता है और शाम को संतुष्टि की भावना लिए घर चले जाते हैं। वे अपने काम का मूल्यांकन नहीं करते। ऐसा माना जाता है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने कार्य को समय के भीतर खत्म करने का इरादा रखता है और अगर इसमें विलंब होता है तो उसके नियंत्रण के बाहर की बात होती है। काम में देरी करने का उसका कोई इरादा नहीं होता, लेकिन अगर उसके काम का तरीका या आलस्य देरो का कारण बनता है. तो क्या यह इरादतन नहीं होता?
मेरा युवा दिनों का अच्छा अनुभव रहा है। उन दिनों मेरे भीतर तीव्र इच्छाशक्ति थी। मेरी इच्छा ज्यादा से ज्यादा कुछ अच्छा सीखने की और ज्यादा से ज्यादा व्यक्त करने की रहती थी। कुल मिलाकर जीवन जो है वह अनसुलझी समस्याओं, संदिग्ध विजय, पराजय का ही मित्रण है। लोग अपनी असफलताओं से कुछ सीखने की बजाय या उनका अनुभव लेने की बजाय उनके कारणों एवं प्रभाव का पोस्टमार्टम करने लगते हैं। वस्तुतः कठिनाइयों एवं संकटों के माध्यम से ही ईश्वर हमें बढ़ने का अवसर प्रदान करता है। इसलिए जब आपकी उम्मीदें, सपने एवं लक्ष्य चूर-चूर हो गए हो तो उनके भीतर ढूंदिए, उनमें कोई सुनहरा मौका अवश्य ही छिपा मिलेगा।