किसी कार्य के बारे में बहुत ज्यादा
सोचने से यही बेहतर है कि उंस
पर काम शुरू कर दिया जाए।
बचपन से मुझे लिखने से चिढ़ थी।
इसका कारण यह है कि मेरे लेखन
माकरण की काफी गलतियां होती, मेरी
तबीयत बहुत खराब है। इस वजह से में लिखने में अपना समय और
ऊर्जा बर्बाद क्यों करू, लिखने की अपेक्षा
बोलकर अपनी बातों को दूसरों तक पहुंचाना
ज्यादा सरल है। काफी समय तक ऐसा ही
चलता रहा।
आखिर फरवरी 2007 में मेरे
गुरु ने भुझे अपने नेतृत्व संबंधी अनुभवों
को कागज पर उतारने के लिए मजबूर किया।
मैं इसके लिए हिचक रहा था और मैंने न
लिखने के लिए उनसे हजार बहाने बनाए.
लेकिन गुरु पीछे पड़ गए और उन्होंने मुझे
बचने का कोई मौका नहीं दिया। आखिर
मैंने अपने विचारों को लेखनबद्ध करना शुरू
किया। मेरे लिए लिखना वाकई कठिन था
और अपनी मर्जी के बिरुद्ध यह कार्य करने
के कारण मैं अक्सर दिमागी उलझन में फंस
जाता, लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होने
लगा और मेरे लेखन में प्रवाह आ गया।
इससे मुझे एक महत्वपूर्ण सबक मिला-
किसी कार्य के बारे में बहुत ज्यादा सोचने
से वही बेहतर है कि उस पर काम शुरू कर
दिया जाए।' सोचना शुरू करते ही हम
अक्सर इसे टालने के कारणों पर ठहर जाते
हैं। ज्यादातर समय हम अपनी क्षमता और
ताकत को इसलिए समझ नहीं पाते क्योंकि
हम उस विशेष काम को टाल रहे होते हैं।
(हम अपने कंफ़र्ट जोन से बाहर नहीं आना
चाहते)।
अनजाने काम के भय से आप
जीवन में आगे नहीं बढ़ेंगे, वरने पीछे ही
जाएंगे। नई शुरुआत करने से कभी न डरें;
हो सकता है इससे आपके जीवन की दिशा
ही बदल जाए। काम की शुरुआत पर ध्यान
दें, बाकी चीजें अपने आप ठीक हो जाएंगी।
यदि ऐसा नहीं किया तो आपको इन्हें दुरुस्त
करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़।
सकती है। अपने कंफर्ट जोन से बाहर
निकलें और अपनी सामध्थ्य को पहचानें।
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